Gk ब्रिटिश भारत में संवैधानिक सुधार| Constitutional reform in British India

 

          Gk ब्रिटिश भारत में संवैधानिक सुधार|Constitutional reform in British India

रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773:

  • द्वैध शासन की समाप्ति
  • बंगाल के गवर्नर को ‘बंगाल का गवर्नर जनरल’ पद नाम दिया गया जिसके अधीन सभी ब्रिटिश क्षेत्र दिए गए.
  • कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना
  • 4 वर्षों के लिए कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स का निर्वाचन
  • डायरेक्टर्स की संख्या 24 सीमित कर दी गई, जिसमें से एक चौथाई प्रतिवर्ष सेवानिवृत्त हो जाते थे.
  • बंगाल में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स और एवं उनकी सहायता के लिए चार सदस्यीय कार्यकारी परिषद् का गठन किया गया. 4 सदस्य थे – फिलिप फ्रांसिस,  क्लावेरिंग, मोंसोन और बारवेल.

 

संशोधित अधिनियम 1781 :

 

  • अपनी अधिकारिक क्षमता में कंपनी के सरकारी कर्मियों के कार्यों को सुप्रीम कोर्ट के क्षेत्र से बाहर रखा गया.
  • सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र परिभाषित किया गया. उसे अपनी प्रक्रिया एवं निर्णय देते समय भारतीयों के धार्मिक एवं सामाजिक रीति रिवाजों और परम्पराओं को ध्यान में रखना था है और उनका सम्मान करना था.
    • गवर्नर जनरल की परिषद् में निर्मित नियम एवं रेगुलेशंस सुप्रीम कोर्ट के साथ पंजीकृत नहीं होते थे.

     

    1784 का पिट्टस इंडिया एक्ट:

    • कंपनी और संसदीय बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स के रूप में  सरकार द्वारा द्वैध शासन लागू हुआ.
    • कंपनी के मामलों में ब्रिटिश सरकार को और अधिक नियंत्रण दिया गया.
    • कंपनी, राज्य के अधीनस्थ एक सहायक विभाग बन गई.
    • गवर्नर जनरल की परिषद् के सदस्यों की संख्या घटाकर तीन कर दी गई.

     

    1786 का एक्ट :

    • गवर्नर जनरल को परिषद् से भी ऊपर प्रबल बनाने के लिए अधिक अधिकार दिए गए और कमांडर इन चीफ बना दिया गया. यह कार्नवालिस को भारत की गवर्नर जनरलशिप स्वीकारने के लिए किया गया.

     

    1793 का चार्टर एक्ट :

    • कंपनी को और 20 वर्षों तक व्यापर करने का एकाधिकार दिया गया.
    • कोर्ट द्वारा व्याख्यायित लिखित कानून द्वारा सरकार की नींव राखी गई.

     

    1813 का चार्टर एक्ट :

  • चीन के साथ व्यापर एवं पूर्वी देशों के साथ व्यापर के अतिरिक्त कंपनी का भारत में व्यापर करने का एकाधिकार छीन लिया गया.
    • पहली बार, भारत में शिक्षा व्यवस्था के लिए एक लाख रुपये की राशि की व्यवस्था की गई.

     

    1833 का चार्टर एक्ट :

    • चाय और चीन के साथ व्यापार में कंपनी के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया.
    • कंपनी को अपनी व्यापारिक गतिविधियाँ बंद करने को कहा गया.
    • बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया. (भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक बने).

     

    1853 का चार्टर एक्ट :

    • इस एक्ट ने कंपनी के अधिकारों को नये सिरे से तय किया और ब्रिटिश क्राउन के तहत भारतीय क्षेत्रों को अपने कब्जे में बनाये रखने की अनुमति दी.
    • सिविल सेवकों के भरती हेतु खुली वार्षिक प्रतियोगिता की व्यवस्था की. (भारतीयों के लिए नहीं)

     

    भारत सरकार अधिनियम, 1858:

    • भारत में कंपनी का शासन समाप्त कर ब्रिटिश क्राउन के हाथों में सौंपा गया.
    • भारत के लिए राज्य सचिव पद (ब्रिटिश कैबिनेट का एक सदस्य) का सृजन
    • वह ताज की शक्तियों का प्रयोग करता था.

            

     भारत सचिव भारत पर गवर्नर जनरल के माध्यम से शासन करते थे.

  • गवर्नर जनरल को वायसराय पदनाम दिया गया. वह भारत सचिव का प्रतिनिधित्व करता था, उसकी सहायता के लिए एक कार्यकारी परिषद् बनाई गई जिसमें सदस्य सरकार के उच्च अधिकारी थे.
  • पिट्स इंडिया एक्ट 1784 द्वारा स्थापित द्वैध शासन प्रणाली को अंततः समाप्त कर दिया गया.

 

भारत परिषद् अधिनियम, 1861:

  • अब कार्यकारी परिषद् को केंद्रीय विधानपरिषद कहा जाने लगा.
  • गवर्नर गवर्नर जनरल को अध्यादेश जारी करने के लिए अधिकृत किया.

 

भारत परिषद् अधिनियम, 1892:

  • प्रांतीय विधान परिषदों में भारतीयों के लिए भी रास्ता खुला.
  • चुनाव के कुछ तत्व प्रस्तावित किये गए.

 

  • भारत परिषद् अधिनियम, 1909 या मार्ले-मिन्टो सुधार:
  • इसमें मुस्लिम के लिए पृथक प्रतिधित्व की व्यवस्था की गई.

 

  • भारत शासन अधिनियम, 1919 या मोंटेग-चेम्सफोर्ड सुधार:
  • प्रान्तों में द्विशासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया.
  • प्रांतीय शासन के विषयों को दो वर्गों में विभाजित किया गया :

 

  • हस्तांतरित

 

इसमें विधान परिषद् के प्रति उत्तरदायी मंत्रियों की सहायता से गवर्नर शासन करता था.

आरक्षित

  • आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद् की सहायता से शासन करता था, जो विधान परिषद् के प्रति उत्तरदायी नहीं थी.
  • पहली बार देश में द्विसदनात्मक व्यवस्था प्रारंभ हुई, हालाँकि वास्तविक रूप में यह 1935 के अधिनियम के बाद ही संभव हो पाया.
  • राज्य सचिव को ब्रिटिश कोष से भुगतान किया गया.
  • भारत का आयुक्त पद

 

भारत शासन अधिनियम, 1935:

  • इसने अखिल भारतीय संघ की स्थापना की, जिसमें शामिल थे-
  • ब्रिटिश प्रान्त
  • देसी रियासतें
  • देसी रियासतों को संघ से जुड़ने का निर्णय स्वेच्छा से करना था और इसलिए यह संघ कभी अस्तित्व में आया ही नहीं क्योंकि संघ के लिए न्यूनतम आवश्यक रियासतों ने भी अपनी सहमती नहीं दी.
  • केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली प्रारंभ की (जैसे- विदेश मामलों का और रक्षा विभाग गवर्नर जनरल के पास आरक्षित कर दिए गए)
  • प्रान्तों में द्वैध शासन प्रणाली समाप्त कर प्रांतीय स्वायत्ता दी गई.
  • बर्मा (अब म्यांमार) को भारत से अलग कर दिया गया.

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